Sandhi Paribhasha Prakar or Udaharan
आज के इस लेख में हम आपको Sandhi in Hindi के बारे में विस्तार पूर्वक बता रहे हैं. यह लेख हिंदी व्याकरण के विद्वानों द्वारा लिखा गया है. अतः सन्धि के बारे में जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़ें.
अक्सर आपने देखा होगा की सन्धि को कहीं पर संधि तो कहीं-कहीं पर सन्धि लिखा गया है. सन्धि के ये दोनों रूप ही सही हैं. संधि के ये रूप व्यंजन संधि के नियमानुसार बनते हैं. जिनके बारे में हम आगे विस्तार से बात करेंगे.
संधि किसे कहते हैं उदाहरण सहित – Sandhi Kise Kahate Hain Udaharan Sahit
Sandhi Ki Paribhasha – दो या अधिक वर्णों के पास-पास आने के परिणामस्वरूप जो विकार उत्पन्न होता है उसे सन्धि कहते हैं. संधि शब्द सम् + धि से बनता है, जिसका शाब्दिक अर्थ मेल या जोड़ होता है. संधि शब्द का विलोम शब्द विग्रह या विच्छेद होता है. यदि दो वर्णों के पास-पास आने से विकार उत्पन्न नहीं हो तो उसे सन्धि नहीं संयोग कहते हैं. संधि में दो या अधिक वर्णों का योग छ: प्रकार से हो सकता है.
- स्वर + स्वर = स्वर संधि
- स्वर + व्यंजन = व्यंजन संधि
- व्यंजन + स्वर = व्यंजन संधि
- व्यंजन + व्यंजन = व्यंजन संधि
- विसर्ग + स्वर = विसर्ग संधि
- विसर्ग + व्यंजन = विसर्ग संधि
संधि के उदहारण – Sandhi Ke Udaharan
- स + अवधान = सावधान
- सौभाग्य + आकांक्षिणी = सौभाग्याकांक्षिणी
- आत्मा + आनंद = आत्मानंद
- चिकित्सा + आलय = चिकित्सालय
- कृपा + आकांक्षी = कृपाकांक्षी
- परम + ईश्वर = परमेश्वर
- ज्ञान + उदय = ज्ञानोदय
- देव + ऋषि = देवर्षि
- वधू + आगमन = वध्वागमन
संधि के भेद – Sandhi Ke Bhed
मुख्य रूप से संधि के तीन प्रकार (Sandhi Ke Prakar) होते है- स्वर संधि, व्यंजन संधि और विसर्ग संधि।
- स्वर सन्धि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
स्वर संधि किसे कहते हैं – Swar Sandhi Kise Kahate Hain
स्वर के साथ स्वर के योग से होने वाले विकार को स्वर संधि कहते हैं. हिंदी में अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ कुल ग्यारह स्वर होते हैं. स्वरों के पास-पास आने से होने वाला विकार पाँच तरह से हो सकता है. इसी आधार पर स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं.
स्वर संधि के भेद – Swar Sandhi Ke Bhed
मुख्य रूप से स्वर संधि के पाँच भेद होते है- दीर्घ संधि, गुण संधि, यण संधि, वृद्धि संधि और अयादि संधि।
- दीर्घ संधि
- गुण संधि
- यण संधि
- वृद्धि संधि
- अयादि संधि
दीर्घ संधि किसे कहते हैं – Dirgh Sandhi Kise Kahate Hain
यदि अ, आ या इ, ई या उ, ऊ में से कोई भी स्वर अपने सजातीय स्वर से जुड़े तो बनने वाला स्वर सदैव दीर्घ स्वर होगा. सजातीय स्वरों का यह योग निम्नलिखित तरीक़े से हो सकता है.
क्र. | सजातीय वर्ण प्रथम + सजातीय वर्ण द्वितीय | बनने वाला वर्ण |
---|---|---|
1 | अ + अ | आ |
2 | अ + आ | आ |
3 | आ + आ | आ |
4 | आ + अ | आ |
5 | इ + इ | ई |
6 | इ + ई | ई |
7 | ई + इ | ई |
8 | ई + ई | ई |
9 | उ + उ | ऊ |
10 | उ + ऊ | ऊ |
11 | ऊ + उ | ऊ |
12 | ऊ + ऊ | ऊ |
जब अ के साथ अ की संधि होती है तो परिणामस्वरूप बनने वाला वर्ण आ होगा (अ + अ = आ)
दीर्घ संधि के उदाहरण – Dirgh Sandhi Ke Udaharan
अधिक + अंश | अधिकांश |
परम + अर्थ | परमार्थ |
दाव + अनल | दावानल |
रोम + अवलि | रोमावली |
अन्ध + अनुगामी | अन्धानुगामी |
स्व + अनुभूत | स्वानुभूत |
न्यून + अधिक | न्यूनाधिक |
काम + अयनी | कामायनी |
स + अवधान | सावधान |
पद + अर्थ | पदार्थ |
राम + अयन | रामायण |
धर्म + अर्थ | धर्मार्थ |
नील + अंचल | नीलांचल |
ऊह + अपोह | ऊहापोह |
शश + अंक | शशांक |
मुर + अरि | मुरारि |
तिल + अंजलि | तिलांजलि |
पूर्व + अह्न | पूर्वाह्न |
रत्न + अवलि | रत्नावली |
गत + अनुगतिक | गतानुगतिक |
जब अ के साथ आ की संधि होती है तो परिणामस्वरूप बनने वाला वर्ण आ होगा (अ + आ = आ)
कुश + आसन | कुशासन |
विवाद + आस्पद | विवादास्पद |
शाक + आहारी | शाकाहारी |
सत्य + आग्रह | सत्याग्रह |
भ्रष्ट + आचार | भ्रष्टाचार |
मरण + आसन्न | मरणासन्न |
अन + आक्रान्त | अनाक्रान्त |
फल + आहार | फलाहार |
रत्न + आकर | रत्नाकर |
रस + आभास | रसाभास |
प्राण + आयाम | प्राणायाम |
दीप + आधार | दीपाधार |
छात्र + आवास | छात्रावास |
विजय + आंकाक्षी | विजयाकांक्षी |
धर्म + आत्मा | धर्मात्मा |
विशाल + आकाय | विशालाकाय |
हिम + आलय | हिमालय |
स्नेह + आकांक्षी | स्नेहाकांक्षी |
सौभाग्य + आकांक्षिणी | सौभाग्याकांक्षिणी |
परम + आत्मा | परमात्मा |
जब आ के साथ आ की संधि होती है तो परिणामस्वरूप बनने वाला वर्ण आ होगा (आ + आ = आ)
कृपा + आकांक्षी = कृपाकांक्षी |
भाषा + आबद्ध = भाषाबद्ध |
महा + आशय = महाशय |
वार्ता + आलाप = वार्तालाप |
चिकित्सा + आलय = चिकित्सालय |
आत्मा + आनंद = आत्मानंद |
दया + आनंद = दयानंद |
महा + आनंद = महानंद |
गदा + आघात = गदाघात |
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जब आ के साथ अ की संधि होती है तो परिणामस्वरूप बनने वाला वर्ण आ होगा (आ + अ = आ)
तथा + अपि | तथापि |
द्वारिका + अधीश | द्वारिकाधीश |
युवा + अवस्था | युवावस्था |
दीक्षा + अन्त | दीक्षान्त |
जब इ के साथ इ की संधि होती है तो परिणामस्वरूप बनने वाला वर्ण ई होगा (इ + इ = ई)
अति + इन्द्रिय | अतीन्द्रिय |
अति + इव | अतीव |
गिरि + इन्द्र | गिरीन्द्र |
कवि + इन्द्र | कवीन्द्र |
रवि + इन्द्र | रवीन्द्र |
मुनी + इन्द्र | मुनीन्द्र |
अभि + इष्ट | अभीष्ट |
जब इ के साथ ई की संधि होती है तो परिणामस्वरूप बनने वाला वर्ण ई होगा (इ + ई = ई)
अभि + ईप्सा | अभीप्सा |
परि + ईक्षा | परीक्षा |
प्रति + ईक्षा | प्रतीक्षा |
गिरि + ईश | गिरीश |
कपि + ईश | कपीश |
क्षिति + ईश | क्षितिश |
जब ई के साथ इ की संधि होती है तो परिणामस्वरूप बनने वाला वर्ण ई होगा (ई + इ = ई)
मही + इन्द्र | महीन्द्र |
महती + इच्छा | महतीच्छा |
जब ई के साथ ई की संधि होती है तो परिणामस्वरूप बनने वाला वर्ण ई होगा (ई + ई = ई)
रजनी + ईश | रजनीश |
नारी + ईश्वर | नारीश्वर |
मही + ईश | महीश |
जब उ के साथ उ की संधि होती है तो परिणामस्वरूप बनने वाला वर्ण ऊ होगा (उ + उ = ऊ)
- कटु + उक्ति = कटूक्ति
- लघु + उत्तम = लघूत्तम
- गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
- भानु + उदय = भानूदय
जब उ के साथ ऊ की संधि होती है तो परिणामस्वरूप बनने वाला वर्ण ऊ होगा (उ + ऊ = ऊ)
- सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धूर्मि
- लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
जब ऊ के साथ उ की संधि होती है तो परिणामस्वरूप बनने वाला वर्ण ऊ होगा (ऊ + उ = ऊ)
- वधू + उक्ति = वधूक्ति
- भू + उपरि भूपरि
जब ऊ के साथ ऊ की संधि होती है तो परिणामस्वरूप बनने वाला वर्ण ऊ होगा (ऊ + ऊ = ऊ)
- सरयू + ऊर्मि = सरयूर्मि
गुण संधि किसे कहते हैं – Gun Sandhi Kise Kahate Hain
गुण संधि के अंतर्गत दो अलग-अलग उच्चारण स्थानों से उच्चारित होने वाले स्वरों के मध्य संधि होती है, जिसके फलस्वरूप बनने वाला स्वर संधि करने वाले स्वरों से भिन्न होता है. गुण संधि के तीन नियम होते है.
01. यदि प्रथम पद का अंतिम वर्ण अ या आ हो तथा द्वितीय पद का प्रथम वर्ण इ या ई हो तो संधि के फलस्वरूप बनने वाला वर्ण ए होगा, अर्थात: अ / आ + इ / ई = ए.
गुण संधि के उदाहरण – Gun Sandhi Ke Udaharan
- स्व + इच्छा = स्वेच्छा
- गज + इन्द्र = गजेन्द्र
- परम + ईश्वर = परमेश्वर
- रमा + ईश = रमेश
- राका + ईश = राकेश
02. यदि प्रथम पद का अंतिम वर्ण अ या आ हो तथा द्वितीय पद का प्रथम वर्ण उ या ऊ हो तो संधि के फलस्वरूप बनने वाला वर्ण ओ होगा, अर्थात: अ / आ + उ / ऊ = ओ.
गुण संधि के उदाहरण – Gun Sandhi Ke Udaharan
- ज्ञान + उदय = ज्ञानोदय
- पुरुष + उत्तम = पुरुषोत्तम
- महा + उदय = महोदय
03. यदि प्रथम पद का अंतिम वर्ण अ या आ हो तथा द्वितीय पद का प्रथम वर्ण ऋ हो तो संधि के फलस्वरूप बनने वाला वर्ण अर् होगा, अर्थात: अ / आ + ऋ = अर् .
गुण संधि के उदाहरण – Gun Sandhi Ke Udaharan
- सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
- महा + ऋषि = महर्षि
- देव + ऋषि = देवर्षि
यण् संधि किसे कहते हैं – Yan Sandhi Kise Kahate Hain
जब इ, ई या उ,ऊ या ऋ भिन्न-भिन्न स्वरों के साथ संधि करके क्रमशः य, व्, र् बनाएं तो उसे यण् संधि कहते हैं. यण् संधि के तीन नियम होते हैं जो निम्नलिखित हैं.
01. यदि इ या ई की संधि अपने सजातीय स्वर (इ या ई) के अतिरिक्त किसी भी अन्य असमान स्वर से हो तो संधि के फलस्वरूप बनने वाला वर्ण य होगा और संधि में प्रयुक्त अन्य असमान स्वर की मात्रा य के साथ जुड़ जाएगी.
यण् संधि के उदाहरण – Yan Sandhi Ke Udaharan
- यदि + अपि = यद्यपि
- अति + अधिक = अत्यधिक
- इति + आदि = इत्यादि
- अति + आचार = अत्याचार
- नि + ऊन = न्यून
02. यदि उ या ऊ की संधि अपने सजातीय स्वर (उ या ऊ) के अतिरिक्त किसी भी अन्य असमान स्वर से हो तो संधि के फलस्वरूप बनने वाला वर्ण व् होगा और संधि में प्रयुक्त अन्य असमान स्वर की मात्रा व् के साथ जुड़ जाएगी.
यण् संधि के उदाहरण – Yan Sandhi Ke Udaharan
- अनु + अय = अन्वय
- सु + आगत = स्वागत
- वधू + आगमन = वध्वागमन
- अनु + एषण = अन्वेषण
03. यदि ऋ की संधि किसी अन्य असमान स्वर से हो तो संधि के फलस्वरूप बनने वाला वर्ण र् होगा और संधि में प्रयुक्त अन्य असमान स्वर की मात्रा र् के साथ जुड़ जाएगी. बड़ी ऋ से होने वाली संधि संस्कृत में होती है न की हिंदी में.
यण् संधि के उदाहरण – Yan Sandhi Ke Udaharan
- पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
- मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
- पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा
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वृद्धि संधि किसे कहते हैं – Vridhi Sandhi
यदि अ या आ के साथ ए या ऐ की संधि होने पर बनने वाला वर्ण ऐ हो और अ या आ के साथ ओ या औ की संधि होने पर बनने वाला वर्ण औ हो तो उसे वृद्धि संधि कहते हैं. वृद्धि संधि के दो नियम होते हैं जो निम्नलिखित हैं.
वृद्धि संधि के उदाहरण – Vridhi Sandhi Ke Udaharan
- एक + एक = एकैक
- सदा + एव = सदैव
- जल + ओक = जलौक
- वन + औषध = वनौषध
अयादि संधि किसे कहते हैं – Ayadi Sandhi
यदि ए, ऐ, ओ, औ के साथ किसी भी वर्ण (सवर्ण या असवर्ण) की संधि के फलस्वरूप होने वाला विकार क्रमशः अय, आय, अव, आव हो तो उसे अयादि संधि कहते हैं.
अयादि संधि के उदाहरण – Ayadi Sandhi Ke Udaharan
- ने + अन = नयन
- नै + अक = नायक
- भो + अन = भवन
- पो + इत्र = पवित्र
- भौ + अक = भावक
व्यंजन संधि किसे कहते हैं – Vyanjan Sandhi
किसी व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण या स्वर वर्ण का मेल होने के परिणामस्वरूप होने वाले विकार को व्यंजन संधि कहते हैं.
व्यंजन संधि के उदाहरण – Vyanjan Sandhi Ke Udaharan
- सदाचार = सत् + आचार
- अब्ज = अप् + ज
- सन्नारी = सत् + नारी
- अलंकार = अलम् + कार
- दिग्दर्शन = दिक् + दर्शन
- सदाचार = सत् + आचार
- वागीश्वरी = वाक् + ईश्वरी
- जगदीश = जगत् + ईश
व्यंजन संधि के अंतर्गत निम्नलिखित स्थितियों में से कोई एक स्थिति प्राप्त होती है.
- स्वर वर्ण का व्यंजन वर्ण से मेल ( स्वर + व्यंजन )
- व्यंजन वर्ण का स्वर वर्ण से मेल ( व्यंजन + स्वर )
- व्यंजन वर्ण का व्यंजन वर्ण से मेल ( व्यंजन + व्यंजन )
व्यंजन संधि को विस्तार से समझने के लिए कुछ परिभाषाओं को समझना आवश्यक है. अतः सबसे पहले हम इन परिभाषाओं के बारे में आपको बता रहे हैं.
- आदेश – संधि के दौरान किसी वर्ण को बदल कर उसके स्थान पर किसी अन्य वर्ण को लिख देने की प्रक्रिया को आदेश कहते हैं.
- आगम – संधि के दौरान किसी अन्य वर्ण को प्रयुक्त करने या लिख देने की प्रक्रिया को आगम कहते हैं.
- लोप – दो वर्णों की संधि के दौरान किसी वर्ण को हटा देने की प्रक्रिया को लोप कहते हैं.
- प्रकृतिभाव – यदि दो वर्णों की संधि के दौरान आदेश, आगम या लोप की स्थिति नहीं हो तो उसे प्रकृतिभाव कहते हैं. प्रकृतिभाव के उदाहरण विसर्ग संधि में देखने को मिलते हैं.
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व्यंजन संधि के नियम – Vyanjan Sandhi Ke Niyam
01. यदि किसी वर्ग के प्रथम वर्ण के साथ किसी सघोष वर्ण ( प्रत्येक वर्ग के पाँचवे वर्ण को छोड़कर ) का मेल हो तो यह प्रथम वर्ण अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण में आदेश हो जाता है. इस नियम को तीसरे वर्ण की संधि का नियम कहते हैं.
अर्थात
क, च, ट, त, प + ( किसी वर्ग का तीसरा एवं चौथा वर्ण + य, र, ल, व, ह + सभी स्वर ) = वर्ग के तीसरे वर्ण में बदलाव.
व्यंजन संधि के उदाहरण – Vyanjan Sandhi Ke Udaharan
- सदाचार = सत् + आचार
- अजन्त = अच् + अन्त
- अब्द = अप् + द
- अब्ज = अप् + ज
02. यदि किसी वर्ग के प्रथम वर्ण के साथ किसी वर्ग के पाँचवे वर्ण (नासिक्य वर्ण) का मेल हो तो प्रथम वर्ण अपने ही वर्ग के पाँचवे वर्ण में आदेश हो जाता है. इस नियम को पाँचवे वर्ण की संधि का नियम या अनुनासिक संधि कहते हैं.
अर्थात
क, च, ट, त, प + वर्ग का पाँचवा वर्ण = वर्ग के पाँचवे वर्ण में बदलाव.
व्यंजन संधि के उदाहरण
- सन्मार्ग = सत् + मार्ग
- सन्नारी = सत् + नारी
- दिङ्नाग = दिक् + नाग
- उन्नति = उद् + नति
- प्राङ्मुख = प्राक् + मुख
03. यदि किसी वर्ग के प्रथम वर्ण के साथ ह वर्ण का मेल हो तो वर्ग का प्रथम वर्ण अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण में आदेश हो जाता है तथा ह वर्ण के स्थान पर प्रयुक्त प्रथम वर्ण के वर्ग का चौथा वर्ण आदेश हो जाता है.
Note: ह के स्थान पर वर्ग के चौथे वर्ण का उपयोग करने के बजाय ह का प्रयोग भी किया जा सकता है. उपरोक्त दोनों स्थितियां सही होंगी.
व्यंजन संधि के उदाहरण – Vyanjan Sandhi Ke Udaharan
- वाक् + हरि = वाग्घरि / वाग्हरि
- अच् + हीन = अज्हीन / अज्झीन
- षट् + हार = षड्ढार / षड्हार
- पत् + हति = पद्धति / पद्हति
- अप् + हरण = अब्भरण / अब्हरण
- सित् + हान्त = सिद्धान्त / सिद्हान्त
04. यदि वर्ग के चतुर्थ वर्ण के साथ उसी वर्ग के तृतीय या चतुर्थ वर्ण का मेल हो तो वर्ग का चतुर्थ वर्ण अपने ही वर्ग के तृतीय वर्ण में बदल जाता है.
व्यंजन संधि के उदाहरण – Vyanjan Sandhi Ke Udaharan
- कघ् + गज = कग्गज
- युध् + ध = युद्ध
- बुध् + ध = बुद्ध
05. यदि द वर्ण से पहले मूर्धन्य स्वर (ऋ) हो तो द वर्ण के स्थान पर ण् आदेश हो जाता है.
अर्थात
ऋ + द = ऋ + ण्
व्यंजन संधि के उदाहरण – Vyanjan Sandhi Ke Udaharan
- मृण्मय = मृद् + मय
- मृण्मयी = मृद् + मयी
- मृण्मूर्ति = मृद् + मूर्ति
06. यदि स्वर रहित म् वर्ण का मेल क-वर्ग, च-वर्ग, ट-वर्ग, त-वर्ग या प-वर्ग में से किसी भी वर्ण से हो तो स्वर रहित म् के स्थान पर उस वर्ग का अंतिम वर्ण आदेश होगा. आदेश हुए उस पाँचवें वर्ण को अनुस्वार के रूप में भी लिखा जा सकता है. संस्कृत में इसे अनुस्वार संधि या परसवर्ण संधि के नाम से जाना जाता है.
अर्थात
म् + क-वर्ग, च-वर्ग, ट-वर्ग, त-वर्ग या प-वर्ग = अनुस्वार या प्रयुक्त वर्ण के वर्ग का पंचम वर्ण
Vyanjan Sandhi Ke Udaharan
- सम् + कर = सङ्कर / संकर
- शम् + कर = शंकर / शङ्कर
- सम् + चय = संचय
- दम् + ड = दंड
- कम् + पन = कंपन
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07. यदि हलन्त म् के साथ अंतस्थ व्यंजन या उष्मीय व्यंजन का मेल हो तो हलन्त म् के स्थान पर अनुस्वार आदेश होगा.
अर्थात
म् + य, र, ल, व, स, श, ष, ह = म् के स्थान पर अनुस्वार आ जाएगा
व्यंजन संधि के उदाहरण – Vyanjan Sandhi Ke Udaharan
- सम् + रचना = संरचना
- स्वयम् + वर = स्वयंवर
- सम् + योग = संयोग
- सम् + वाद = संवाद
- सम् + शय = संशय
- सम् + सार = संसार
08. यदि सम् उपसर्ग के बाद कृ धातु से बना शब्द (कृत, कृति, कर्ता, कार, करण इत्यादि) आए तो हलन्त म् अनुस्वार में आदेश हो जाएगा तथा कृ धातु शब्द से पहले दन्त्य स् का आगम होगा.
अर्थात
सम् उपसर्ग + कृ धातु से बना शब्द = अनुस्वार + स् + कृ धातु से बना शब्द
व्यंजन संधि के उदाहरण – Vyanjan Sandhi Ke Udaharan
- सम् + कार = संस्कार
- सम् + करण = संस्करण
- सम् + कृत = संस्कृत
- सम् + कृति = संस्कृति
- सम् + कर्ता = संस्कर्ता
09. यदि परि उपसर्ग के बाद कृ धातु से बना कोई शब्द (कृत, कृति, कर्ता, कार, करण इत्यादि) आए तो परि उपसर्ग और कृ धातु से बने शब्द के मध्य से मुर्धन्य ष् का आगम होगा.
अर्थात
परि उपसर्ग + कृ धातु से बना शब्द = परि + ष् + कृ धातु से बना शब्द
व्यंजन संधि के उदाहरण – Vyanjan Sandhi Ke Udaharan
- परि + कार = परिष्कार
- परि + कृत = परिष्कृत
- परि + करण = परिष्करण
- परि + कर्ता = परिष्कर्ता
- परि + कृति = परिष्कृति
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उपसर्ग से संबंधित विशेष नियम
यदि किसी उपसर्ग का अंतिम वर्ण स्वर रहित हो तथा यह वर्ण किसी स्वर से मेल करे तो वहां संधि नहीं होगी बल्कि संयोग होगा.
उदाहरण
- सम् + आचार = समाचार
- निर् + उपाय = निरुपाय
- निर् + उत्तर = निरुत्तर
10. यदि त् या द् वर्ण के साथ च या छ वर्ण का मेल हो तो त् या द् वर्ण के स्थान पर च् वर्ण आदेश होगा.
अर्थात
त् / द् + च / छ = च्
उदाहरण
- सत् + चरित्र = सच्चरित्र
- सत् + चित = सच्चित
- उद् + चारण = उच्चारण
- सत् + चेष्टा = सच्चेष्टा
- सत् + चित् + आनन्द = सच्चिदानन्द
11. यदि त् या द् वर्ण के साथ ज या झ वर्ण का मेल हो तो त् या द् वर्ण के स्थान पर ज् वर्ण आदेश होगा.
अर्थात
त् / द् + ज / झ = ज्
उदाहरण
- सत् + जन = सज्जन
- उत् + ज्वल = उज्जवल
- महत् + ज्ञान = महज्ज्ञान
- महत् + झंकार = महज्झंकार
- यावत् + जीवन = यावज्जीवन
12. यदि त् या द् वर्ण के साथ ट या ठ वर्ण का मेल हो तो त् या द् वर्ण के स्थान पर ट् वर्ण आदेश होगा.
अर्थात
त् / द् + ट / ठ = ट्
उदाहरण
- तद् + टीका = तट्टीका
- बृहत् + टीका = बृहट्टीका
13. यदि त् या द् वर्ण के साथ ड या ढ वर्ण का मेल हो तो त् या द् वर्ण के स्थान पर ड् वर्ण आदेश होगा.
अर्थात
त् / द् + ड / ढ = ड्
उदाहरण
- उत् + डयन = उड्डयन
- भवत् + डमरू = भवड्डमरू
14. यदि त् या द् वर्ण के साथ ल वर्ण का मेल हो तो त् या द् वर्ण के स्थान पर ल् वर्ण आदेश होगा.
अर्थात
त् / द् + ल = ल्
उदाहरण
- उद् + लेख = उल्लेख
- उद् + लास = उल्लास
- तद् + लीन = तल्लीन
- तद् + लय = तल्लय
- उत् + लंघन = उल्लंघन
15. यदि त् या द् वर्ण के साथ श वर्ण का मेल हो तो त् या द् वर्ण के स्थान पर च् वर्ण तथा श वर्ण के स्थान पर छ वर्ण का आदेश होगा.
अर्थात
त् / द् + श = च् + छ
उदाहरण
- उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
- उत् + श्रृंखल = उच्छृंखल
- सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
- तद् + शिव = तशिव
- सत् + शासन = सच्शासन
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16. यदि किसी भी स्वर के साथ छ वर्ण का मेल हो तो स्वर एवं छ वर्ण के मध्य च् वर्ण का आगम हो जाता है.
अर्थात
कोई भी स्वर + छ = कोई भी स्वर + च् + छ
उदाहरण
- आ + छादन = आच्छादन
- प्रति + छवि = प्रतिच्छवि
- अनु + छेद = अनुच्छेद
- परि + छेद = परिच्छेद
- छत्र + छाया = छत्रच्छाया
17. यदि अ या आ के अतिरिक्त किसी भी स्वर के साथ स वर्ण का मेल हो तो स वर्ण ष वर्ण में बदल जाता है.
उदाहरण
- अभि + सेक = अभिषेक
- नि + सिद्ध = निषिद्ध
- वि + सम = विषम
- नि + संग = निषंग
- नि + स्थुर = निष्ठुर
18. यदि ष् वर्ण के साथ त्, थ्, न् (दन्त्य) वर्ण का मेल हो तो दन्त्य वर्ण क्रमशः ट्, ठ्, ण् में बदल जाते हैं.
उदाहरण
- आकृष् + त = आकृष्ट
- इष् + त = इष्ट
- निष् + था = निष्ठा
- कृष् + न = कृष्ण
- विष् + नु = विष्णु
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19. यदि उद् उपसर्ग के साथ दन्त्य स् का मेल हो तो उद् के स्थान पर उत् का आदेश हो जाता है तथा दन्त्य स् का लोप हो जाता है.
अर्थात
उद् उपसर्ग + दन्त्य स् = उत् उपसर्ग
उदाहरण
- उद् + स्थान = उत्थान
- उद् + स्थापना = उत्थापना
20. यदि किसी शब्द में न वर्ण हो और न वर्ण से पहले ऋ, य, र, ष हो तो न वर्ण के स्थान पर ण आदेश हो जाता है, इसे न वर्ण का मूर्धन्यीकरण कहते हैं.
उदाहरण
- ऋ + न = ऋण
- परि + नाम = परिणाम
- पूर् + न = पूर्ण
- निर् + नय = निर्णय
- हर् + अन = हरण
21. यदि प्रथम पद का अंतिम वर्ण न् हो तथा उसके बाद कोई भी शब्द हो तो न् वर्ण का लोप हो जाएगा.
अर्थात
प्रथम का अंतिम वर्ण न् + कोई भी शब्द = न् वर्ण का लोप होगा.
उदाहरण
- युवन् + अवस्था = युवावस्था
- प्राणिन् + मात्र = प्राणिमात्र
- प्राणिन् + विज्ञान = प्राणिविज्ञान
- प्राणिन् + भक्ति = प्राणिभक्ति
- स्वामिन् + भक्त = स्वामिभक्त
22. यदि निर् उपसर्ग के साथ र वर्ण का मेल हो तो निर् उपसर्ग का नि दीर्घादेश होकर नी तथा निर् उपसर्ग के र् वर्ण का लोप हो जाता है.
अर्थात
निर् उपसर्ग + र = नी + र
उदाहरण
- निर् + रस = नीरस
23. यदि दुर् उपसर्ग के साथ र वर्ण का मेल हो तो दुर् उपसर्ग का दु दीर्घादेश होकर दू तथा दुर् उपसर्ग के र् वर्ण का लोप हो जाता है.
अर्थात
दुर् उपसर्ग + र = दू + र
उदाहरण
- दुर् + रस = दूरस
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विसर्ग संधि किसे कहते हैं उदाहरण सहित – Visarg Sandhi Kise Kahate Hain
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन वर्णों का मेल होने पर होने वाले विकार को विसर्ग संधि कहते हैं. विसर्ग संधि में विसर्ग का मेल वर्णों से होता है. विसर्ग संधि में विसर्ग से पहले हमेशा स्वर ही होता है न की स्वर रहित व्यंजन.
विसर्ग संधि के नियम – Visarg Sandhi Ke Niyam
01. यदि विसर्ग के साथ च, छ या श (तालव्य अघोष वर्ण) में से किसी का मेल हो तो विसर्ग के स्थान पर तालव्य श आदेश होगा.
अर्थात
स्वर + : + च/छ/श = स्वर + श् + च/छ/श
विसर्ग संधि के उदाहरण – Visarg Sandhi Ke Udaharan
- नि: + शुल्क = निश्शुल्क
- मन: + चेतना = मनश्चेतना
- नि: + श्वास = निश्श्वास
- दु: + शासन = दुश्शासन
- अन्त: + चक्षु = अन्तश्चक्षु
02. यदि विसर्ग के साथ ट, ठ या ष (मूर्धन्य अघोष वर्ण) में से किसी का मेल हो तो विसर्ग के स्थान पर मूर्धन्य ष आदेश होगा.
अर्थात
स्वर + : + ट/ठ/ष = स्वर + ष् + ट/ठ/ष
विसर्ग संधि के उदाहरण – Visarg Sandhi Ke Udaharan
- धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
- धनु: + टीका = धनुष्टीका
- चतुः + टीका = चतुष्टीका
- मनः + टिप्पणी = मनष्टिप्णी
03. यदि विसर्ग के साथ त, थ या स (दन्त्य अघोष वर्ण) में से किसी का मेल हो तो विसर्ग के स्थान पर दन्त्य स आदेश होगा.
अर्थात
स्वर + : + त/थ/स = स्वर + स् + त/थ/स
विसर्ग संधि के उदाहरण – Visarg Sandhi Ke Udaharan
- नमः + ते = नमस्ते
- अन्तः + थल = अन्तस्थल
04. यदि विसर्ग से पहले अ या आ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तथा विसर्ग का मेल क, ख, प, फ में से किसी वर्ण से हो रहा हो तो विसर्ग के स्थान पर मूर्धन्य ष् आदेश होगा.
अर्थात
अ या आ के अतिरिक्त कोई स्वर + : + क/ख/प/फ = स्वर + ष् + क/ख/प/फ
विसर्ग संधि के उदाहरण – Visarg Sandhi Ke Udaharanउदाहरण
- बहिः + कार = बहिष्कार
- बहिः + कृत = बहिष्कृत
- चतुः + पथ = चतुष्पथ
- निः + प्रयोजन = निष्प्रयोजन
- दुः + प्रभाव = दुष्प्रभाव
05. यदि विसर्ग से पहले अ या आ वर्ण हो तथा विसर्ग का मेल क, ख, प, फ में से किसी भी एक वर्ण से हो तो प्रकृतिभाव की संधि होती है, अर्थात दोनों पदों को ज्यों का त्यों जोड़ दिया जाता है.
अर्थात
अ/आ + : + क/ख/प/फ = अ/आ + : + क/ख/प/फ
विसर्ग संधि के उदाहरण – Visarg Sandhi Ke Udaharan
- प्रातः + काल = प्रातःकाल
- मनः + कामना = मनःकामना
- मनः + प्रसाद = मनःप्रसाद
- पयः + पान = पयःपान
- अधः + पतन = अधःपतन
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