Parshvik Vyanjan | पार्श्विक व्यंजन
इस लेख में हम आपको हिंदी वर्णमाला के पार्श्विक व्यंजनों (Parshvik Vyanjan) के बारे में बता रहे हैं। इस लेख में हम जानेंगे की पार्श्विक व्यंजन किसे कहते हैं, पार्श्विक व्यंजन कौन-कौन से होते हैं और पार्श्विक व्यंजन (Parshvik Vyanjan) कितने होते हैं।
दरअसल, हिंदी व्यंजनों का जब उच्चारण के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है तो हिंदी व्यंजनों के निम्नलिखित आठ भेद होते हैं।
- स्पर्श व्यंजन
- संघर्षी व्यंजन
- स्पर्श संघर्षी व्यंजन
- नासिक्य व्यंजन
- पार्श्विक व्यंजन
- प्रकम्पित व्यंजन
- उत्क्षिप्त व्यंजन
- संघर्षहीन व्यंजन
इन आठ भेदों में से एक भेद पार्श्विक व्यंजन होता है, जिसके बारे में इस लेख में हम आपको विस्तार से बताएंगे। अतः पार्श्विक व्यंजनों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी हासिल करने के लिए पूरे लेख को धैर्य पूर्वक पढ़ें।
पार्श्विक व्यंजन किसे कहते हैं | Parshvik Vyanjan Kise Kahate Hain
जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय प्राणवायु जिह्वा के दोनों पार्श्व से निकल जाती हो उन्हें पार्श्विक व्यंजन (Parshvik Vyanjan) कहते हैं। पार्श्विक व्यंजनों की संख्या एक होती है। हिंदी वर्णमाला में ल व्यंजन को पार्श्विक व्यंजन (Parshvik Vyanjan) कहते हैं।
दरअसल, ल वर्ण का उच्चारण करते समय हमारी जीभ का अग्रभाग मसूड़े को स्पर्श करता है, जिससे प्राणवायु का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। प्राण वायु का मार्ग रुक जाने से वायु हमारी जीह्वा के आस-पास (बग़ल) से निकलती है और ‘ल’ का उच्चारण पूरा होता है।
प्राण वायु के हमारी जिह्वा के बग़ल से निकलने की वजह से ही ल वर्ण को पार्श्विक व्यंजन कहते हैं।
पार्श्विक व्यंजन का उच्चारण स्थान
पार्श्विक व्यंजन का उच्चारण स्थान दन्त होता है, इसलिए पार्श्विक व्यंजन को दन्त्य वर्ण भी कहते हैं।
पार्श्विक वर्ण क्या है?
जिन वर्णों का उच्चारण करते समय प्राणवायु जिह्वा के दोनों पार्श्व से निकल जाती हो उन्हें पार्श्विक व्यंजन कहते हैं।
पार्श्विक व्यंजन कौन-कौन से हैं
ल व्यंजन को पार्श्विक व्यंजन कहते हैं।
पार्श्विक व्यंजन किसे कहते हैं
जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते समय प्राणवायु जिह्वा के दोनों पार्श्व से निकल जाती हो उन्हें पार्श्विक व्यंजन कहते हैं।
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